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2019 में मिले प्रचंड बहुमत के बाद यह पहली बार होगा, कि प्रधानमंत्री मोदी अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे. इस वक्त मंत्रिमंडल में 53 सदस्य हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल में 81 सदस्य हो सकते हैं. कई मंत्रियों के पास एक से अधिक विभाग हैं. अगले साल पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं. मंत्रिमंडल विस्तार में उनका भी ध्यान रखा जाएगा, ऐसी उम्मीद की जा रही है. थावर चंद गहलोत जैसे वरिष्ठ और मंझे हुए राजनेता को पहले ही दूसरी जिम्मेवारी दी जा चुकी है. हालांकि, इस बार सबसे अधिक चर्चा है कि क्या जेडीयू मंत्रिमंडल में शामिल होगी या फिर सांकेतिक प्रतिनिधित्व का हवाला देकर अलग रास्ता अपनाएगी.
हैदराबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कैबिनेट का विस्तार करने जा रहे हैं. जिन नेताओं को उनके मंत्रिमंडल में जगह मिलने की संभावना है, उनमें से अधिकांश दिल्ली आ चुके हैं. इनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, नारायण राणे, सर्वानंद सोनोवाल, अनुप्रिया पटेल और पशुपति पारस का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है.
कैबिनेट में न सिर्फ नए लोगों को जगह मिलेगी, बल्कि कुछ लोगों को हटाने के भी संकेत पहले ही दे दिए गए हैं. इनमें सबसे प्रमुख नाम थावर चंद गहलोत का है. राष्ट्रपति ने उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बनाए जाने की घोषणा भी कर दी है.
हालांकि, उन्हें क्यों हटाया जा रहा है. यह किसी को पता नहीं है. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो उनका कामकाज अच्छा रहा है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की जिम्मेवारी उन्होंने अच्छे से निभाई है. वह अभी 73 साल के हैं. पीएम मोदी से उनका अच्छा संबंध भी रहा है. वह आरएसएस के भी चहेते रहे हैं. इसके बावजूद उन्हें गवर्नर बनाया गया है.
सूत्रों का कहना है कि उनके जाने से पार्टी को तीन अन्य नेताओं को कोई न कोई पद मिल जाएगा. इस वक्त पार्टी अधिक से अधिक नेताओं को संतुष्ट रखना चाहती है. गहलोत भाजपा संसदीय दल के सदस्य हैं. वह राज्यसभा से सांसद हैं. उनके जाने से मंत्रिमंडल में भी जगह खाली हो जाएगी.
थावर चंद गहलोत दलित समुदाय से आते हैं. ऐसे में भाजपा हर हाल में चाहेगी कि वह दलितों के बीच गलत संदेश न जाए. दूसरी बात यह है कि अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. वहां दलित फैक्टर बहुत बड़ी भूमिका निभाएगा. मायावती अब पहले की तरह सक्रिय नहीं रहती हैं. जाहिर है, भाजपा को इसका इल्म जरूर होगा.
वैसे भी राम विलास पासवान (निधन) और थावर चंद गहलोत की विदाई के बाद दलित समुदाय से किन्हें मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी, इस पर कयास जारी है.
माना जा रहा है कि मोदी लोजपा (पारस गुट) से पशुपति पारस को जगह दे सकते हैं. वह राम विलास पासवान के भाई हैं. नीतीश कुमार को भी उनके नाम पर कोई आपत्ति नहीं है. हालांकि, चिराग पासवान ने घोषणा कर रखी है कि यदि उनके चाचा को मंत्रिमंडल में जगह दी जाएगी, तो वह कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. उनका कहना है कि उन्हें लोजपा के कोटे से मंत्री नहीं बनाया जाए. चिराग को मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी या नहीं, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है. चिराग बार-बार अपने को मोदी का ‘हनुमान’ बताते हैं.
यूपी से दलित नेता रामशंकर कठेरिया का भी नाम सामने आ रहा है.
इन सबके बीच सबसे अधिक कयास जेडीयू को लेकर लगाया जा रहा है. क्या जेडीयू इस बार मंत्रिमंड्ल विस्तार में शामिल होगी, अभी तक स्थिति साफ नहीं है. पिछली बार जब मोदी अपने मंत्रिमंडल का गठन कर रहे थे, तो उन्होंने जेडीयू को आमंत्रित किया था. लेकिन तब पार्टी ने यह कहकर इस ऑफर को अस्वीकार कर दिया था कि वह सिर्फ सांकेतिक प्रतिनिधित्व नहीं चाहती है. उस वक्त एक सीट जेडीयू को दिया जा रहा था.
इस बार सूत्र बताते हैं कि जेडीयू ने मंत्रिमंडल में चार सीटें मांगी हैं. जेडीयू का कहना है कि बिहार में जिस तर्ज पर बराबर-बराबर का फॉर्मूला भाजपा के साथ लागू है, वही व्यवस्था दिल्ली में भी लागू हो.
वैसे, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज बताया कि मंत्रिमंडल में किसे जगह मिलेगी, यह फैसला पीएम का होता है. यह उनका विशेषाधिकार है. हमारी ओर से पार्टी अध्यक्ष आरसीपीसी सिंह तय करेंगे, कि कोई मंत्री बनेगा या नहीं.
आपको बता दें कि मंत्रिमंडल में अधिकतम 81 सदस्य हो सकते हैं. इस समय मंत्रिमंडल में 53 सदस्य हैं. 28 सदस्यों को जोड़ा जा सकता है. जाहिर है, मोदी इस वक्त जो भी फैसला करेंगे, उसका असर अगले साल पांच राज्यों में होने वाले चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर असर पड़ना तय है.