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कोरबा पाली/19 अक्टूबर 2024 (KRB24NEWS)

शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री तुलसी मानस सत्संग समिति पाली के तत्वाधान मे महामाया देवालय प्रांगण में तीन दिवसीय मानस सत्संग प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित हुआ.जिसमें मानस वक्ता, भगवताचार्य ने विभिन्न कथा प्रसंगों के माध्यम से भक्ति संगीत की अमृत वर्षा की. प्रथम दिवस को सुश्री अनुसूईया देवी मानस कोकिला और द्वितीय तथा तृतीय दिवस पंडित मुरारी लाल त्रिपाठी का सानिध्य प्राप्त हुआ. पंडित श्री त्रिपाठी ने कहा कि भारत वर्ष धर्म संस्कृति की विराटता को अपने में अनादिकाल से संजोए हुए है। यहां देवता पितर, ऋषि, प्रकृति पशु, पेड़-पौधे सभी की किसी न किसी रूप में पूजा एवं आराधना की जाती है। ऋतु प्रधान देश होने से यहां प्रत्येक ऋतु में विशेष उत्सव मनाए जाते हैं।कई उत्सव ऐसे हैं जिसमें उपासना एवं आराधना का संबंध सीधे आत्मा और परमात्मा से जोड़ने वाला होता ऐसा ही पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा को मनाया जाता है। जिस दिन यमुना के तट पर भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास किया था। कहा जाता है कि आज भी निधिवन में वह रहस्यात्मक लीला शरद पूर्णिमा को संपन्न होती है। किसी न किसी आत्मानंदी साधक को महारास का साक्षात्कार होता है।उन्होंने कहा कि शास्त्रों में शरद ऋतु को अमृत संयोग ऋतु भी कहा जाता है, क्योंकि शरद की पूर्णिमा को चन्द्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा का संयोग उपस्थित होता है। वही सोम चन्द्र किरणें धरती में छिटक कर अन्न-वनस्पति आदि में औषधीय गुणों को सींचती है।धार्मिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इसलिए पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की रोशनी में खीर रखी जाती है। इसका सेवन करने से साधक को शांति प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।श्री त्रिपाठी ने कहा कि श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्द में रास पंचाध्यायी में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इसी शरद पूर्णिमा को यमुना पुलिन में गोपिकाओं के साथ महारास के बारे में बताया गया है.वस्तुतः समस्त रोग कामनाओं से उत्पन्न होते हैं जिनका मुख्य स्थान हृदय होता है। मानव अच्छी-बुरी अनेक कामनाएं करता है। उनको प्राप्त करने की उत्कृष्ट इच्छा प्रकट होती है। इच्छा पूर्ति न होने पर क्रोध-क्षोभ आदि प्रकट होने लगता है। वह सीधे हृदय पर ही आघात करता है।वास्तव में मानव खुद अपने लिए समस्या पैदा करता है लेकिन वह चाहे तो समाधान भी उसके पास है।शरद पूर्णिमा इन समस्त बिंदुओं पर चिंतन कर हृदय से सांसारिक रस हटाकर भगवान के महारस से जुड़ने का उत्सव है।