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साकेत वर्मा कोरबा/पाली :- कोरोना संक्रमण को लेकर इन दिनों पूरे देश में त्राहिमाम मचा हुआ है और लाकडाउन हालात में हर कोई आपदा से गुजर रहा है।ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजी मजदूरी बंद रहने से गरीब तबके के लोग मदद के लिए इधर- उधर भटक रहे है लेकिन उन्हें कुप्रबंध व्यवस्था में उम्मीद की किरण नही दिख रही और वे भगवान भरोसे छोड़ दिये गए है जहां लाकडाउन में रोजी- मजदूरी पर आश्रित गरीब निराश्रित वर्ग के ग्रामीणों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है जिस ओर प्रशासनिक वर्ग या जनप्रतिनिधि कोई भी संज्ञान लेना मुनासिब नही समझ रहे है

ऐसा ही एक मामला पाली विकासखण्ड अंतर्गत तथा पाली मुख्यालय से महज दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत सैला का सामने आया है जहां के बेसहारा निराश्रित वर्ग के अनेकों बुजुर्ग महिला- पुरुष ग्रामीणों जिन्हें शासन की ओर से माह में महज 10 किलो चावल की पात्रता है और जो दूसरों के यहां रोजी मजदूरी कर अपना जीवन की गाड़ी खींचते है, वर्तमान कोरोना संकट काल मे लाकडाउन के दौरान ऐसे गरीब निराश्रितों के सामने खाने के लाले पड़ गए है और जो अपनी भूख मिटाने हेतु मदद के लिए इधर- उधर भटक रहे है पर धन्य है गांव की सरपंच भी जिन्हें इन्ही गरीब ग्रामीणों ने चुनकर पंचायत में बैठाया वे बजाय मदद के आपदा में अवसर का मजा ले रहे है।इस पंचायत के वार्ड क्रमांक- 04 में निवासरत 70 वर्षीय निराश्रित पुनिया बाई जो अपने 60 वर्षीय भाई बिसाहू सारथी के साथ ग्राम में ही रोजी मजदूरी के सहारे अपना पेट पालते है।इनकी गरीबी ऐसी की इनके पास खुद का घर भी नही है तथा जो काफी जर्जर हो चुके पुराने पंचायत भवन में विगत 6- 7 वर्षों से आश्रय लेकर रह रहे है।हैरानी वाली बात तो यह है कि पंचायत ने इनको 10 रुपए किलो वाला राशन कार्ड बनाकर दिया है तथा आज पर्यन्त पेंशन की पात्रता भी नही दी गई।जिन्हें निराश्रित तौर पर प्रतिमाह मात्र 10 किलो चावल दिया जा रहा है। वहीं आवासपारा में निवास करने वाली 75 वर्षीय निराश्रित फगनीबाई जिसका 1 रुपए प्रति किलो वाला राशनकार्ड तो है और जो हर माह 35 किलो चांवल की हकदार भी है लेकिन विगत 4- 5 माह से इस गरीब निराश्रित का राशन कार्ड सरपंच ने अपने पास रख लिया है और बदले में मात्र 10 किलो चांवल हर माह दे दिया जाता है जिसके कारण ये भिक्षा मांगकर अपने जीवन की डोर खींच रही है।इस पंचायत में ऐसे ना जाने कितनों निराश्रित एवं बेसहारा वृद्धवय ग्रामीण है जिन्हें आज खाने के लाले पड़े है और जो वर्तमान हालात में खुद के पेट की आग बुझाने दूसरों के सामने अपना हाथ फैलाते दिख रहे है।ऐसी स्थिति खाली एक पंचायत की नही अमूमन अनेकों पंचायतों में इस तरह के हालात इन दिनों निर्मित है जहां सरपंचों ने आपदा को अवसर में बदल दिया है, कारण यह है कि पाली जनपद कार्यालय में वित्तीय एवं लेखा प्रभार के लिए अलग- अलग दो सीईओ की नियुक्ति जिला प्रशासन ने कर रखी है जिनके कार्यों में तालमेल स्थापित नही हो पाने के कारण जनपद के कार्य काफी प्रभावित हो चलें है और जिसका फायदा सरपंच- सचिव उठाते हुए शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में घोर कोताही बरत रहे है जिन पर नकेल कसने वाला फिलहाल कोई नही दिख रहा और जिसका खामियाजा कोरोना महामारी के इस आपदा काल मे निराश्रित एवं गरीब तबके के ऐसे बेसहारा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है।यहां के अन्य ग्रामीणों ने बताया कि सोसायटी का संचालन सरपंच द्वारा किया जाता है जो माह के 20 से 22 तारीख को राशन वितरण का कार्य प्रारंभ कराते है जिसमे भी भारी अनियमितता बरती जाती है। इस दौरान यदि कोई ग्रामीण अनियमिता को लेकर विरोध करता है तो उसका राशनकार्ड निरस्त करने की बात कही जाती है जिसके कारण ग्रामीण चुप रह जाते है।

सदभाव पत्रकार संघ के ब्लाक उपाध्यक्ष ने एक दिन से भूखी पुनियाबाई एवं उसके भाई को उपलब्ध कराया राशन सामाग्री :- स्थानीय पाली नगर निवासी एवं सदभाव पत्रकार संघ छत्तीसगढ़ के पाली ब्लाक उपाध्यक्ष विक्की अग्रवाल अपने किसी कार्य से सैला मुख्यमार्ग से गुजर रहे थे इसी दौरान देखा कि मार्ग किनारे खड़ी वृद्ध पुनियाबाई एवं उसके भाई बिसाहूराम ने उसे रुकने अपना हाथ बढ़ाया, विक्की अग्रवाल ने अपनी चारपहिया वाहन रोकी और रोके जाने का कारण पूछा तब भूख से बेहाल पुनियाबाई एवं उसके भाई ने अपने हालात के बारे में जो बताया वह मन को विचलित करने वाला था।उन्होंने अपने थके आंखों से बहते आंसू को पोंछते हुए बताया कि वे एक दिन से भूखे है और सरपंच के पास मदद के लिए गए थे लेकिन सरपंच ने उनकी कोई मदद नही की इस हालात में वे 24 घँटे से केवल पानी के सहारे जीवित है।उनकी बात सुनकर संघ के उपाध्यक्ष विक्की अग्रवाल ने तत्काल चांवल सहित अन्य सभी सूखा राशन सामाग्री उन्हें उपलब्ध कराया और आगे भी सहयोग करने की बात कही।इस मदद से एक दिन से भूखे भाई- बहन के चेहरे पर जो खुशी के भाव झलके वह वास्तव में राहत भरा और उम्मीद का भाव था।

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