Share this News

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन अपने कई मिशनों पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है और इसरो के वैज्ञानिकों के बुलंद हौसलों का अंतरिक्ष के क्षेत्र में पूरी दुनिया हमारा लोहा मान रही है. अंतरिक्ष और विज्ञान से जुड़ा दूसरा बड़ा नाम दिमाग में नासा का आता है, लेकिन जिस तरह से बेहद छोटे बजट में इसरो अपने मिशनों को आगे बढ़ा रहा है उससे लग रहा है कि इसरो नासा को जल्द ही टक्कर देने लगेगा. आइए जानते हैं अपने कार्यों से देश का नाम ऊंचा करने वाले इसरो के अब तक के सफरनामे के बारे में…

नई दिल्ली: दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी अमेरिका की नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA-1958) से एक दशक से भी ज्यादा समय बाद स्थापित हुई इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO-1969) ने 52 सालों के सफर में कई उपलब्धियों को हासिल करके मील का पत्थर साबित किया है. ये हम नहीं आंकड़े खुद बता रहे है. वर्तमान में इसरो विश्व के 7 शीर्ष 7 अंतरिक्ष अनुसंधान संगठनों की सूची में चौथे स्थान पर है.

दिलचस्प बात ये है कि खुद को सुपर पॉवर कहने वाले पड़ोसी देश चीन की एजेंसी सीएनएसए इसरो से एक पायदान नीचे है. इसरो के इसी सफलतम सफर की प्रमुख उपलब्धि रोहिणी सैटेलाइट 1 उपग्रह के सफलतापूर्वक लॉन्च के आज 21 साल पूरे हो गए हैं.

इसरो की शुरुआत तो वैसे साल 1962 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम साराभाई के नेतृत्व में गठित भारतीय राष्ट्रीय समिति (इनकोस्पार) के गठन से हुई. उस समय विक्रम साराभाई ने कहा था कि कई लोग एक विकासशील देश में होने वाली स्पेस ऐक्टिविटीज को लेकर सवाल करते हैं कि इनका महत्व क्या है ? हमारे लिए, उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट है.

हम आर्थिक रूप से विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए उनकी तरह चांद या ग्रहों तक इंसान को भेजने के सपने लेकर नहीं चल रहे. हमें लगता है कि अगर देश के लिए और अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम कर रहे देशों के लिए हम महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा सकते हैं तो हमें अडवांस टेक्नोलॉजी में किसी से पीछे नहीं रहना चाहिए.

विश्व के प्रमुख स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन

स्पष्ट सोच, सटीक लक्ष्य

इसरो की स्थापना के साथ ही सोच साफ थी कि अन्य अंतरिक्ष संगठनों से इतर अंतरिक्ष में रिसर्च या अनुसंधान करना है. अंतरिक्ष में इसरो की ओर से भेजे गए सैटलाइट्स इसके उदाहरण हैं. इनका मकसद बाकी स्पेस एजेंसियों (जिनमें नासा भी शामिल है) के साथ मिलकर रिसर्च करना और अंतरिक्ष के रहस्य को समझना है.

इसरो के सटीक लक्ष्य निर्धारण के बारे में इसी बात से लगाया जा सकता है कि कभी अमेरिका और रूस के बीच अंतरिक्ष में जाने को लेकर होड़ देखने को मिली थी. वर्तमान में सबसे शक्तिशाली रॉकेट बनाने की होड़ अमेरिका और चीन के बीच देखने को मिल रही है, इन सबसे इसरो को फर्क नहीं पड़ता.

इसरो के रॉकेट लॉन्चर रेंज (SLV, ASLV, PSLV और GSLV) के नाम के साथ SLV अब भी जुड़े हैं, यानी कि वे ‘सैटेलाइट लॉन्च वीइकल्स’ हैं. इनका पहला लेटर अलग-अलग ऑर्बिट्स को दर्शाता है. जैसे कि PSLV पोलर सिंक्रनस ऑर्बिट और GSLV जियो सिंक्रनस ऑर्बिट तक जाने वाले वीइकल्स हैं. इसरो अपने रॉकेट्स को वीइकल्स मानता है और मिशन रॉकेट बनाने की होड़ में शामिल नहीं है. स्थापना के पहले दिन से ही लक्ष्य स्पष्ट होने की वजह से इसरो ने ठोस ईंधन का प्रयोग करके अपने अनुसंधित रॉकेट का निर्माण शुरू कर दिया, जिसे रोहिणी की संज्ञा दी गई.

रोहिणी सैटेलाइट सीरीज

रोहिणी सैटेलाइट 1 एक 35 किलो का प्रायोगिक स्पिन स्थिर उपग्रह था जिसमें 16 वॉट की शक्ति का उपयोग किया गया था. 18 जुलाई 1980 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसे सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था.

इसकी खासियत ये थी कि यह स्वदेशी प्रक्षेपण यान एसएलवी से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित पहला उपग्रह था. इसने एसएलवी के चौथे चरण पर डेटा प्रदान किया. इसके रोहिणी सैटेलाइट डी 1 को 31 मई 1981 में, रोहिणी सैटेलाइट डी 2 को 17 अप्रैल 1983 में सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया.

ISRO का मूल मंत्र कम खर्च में बेहतर कार्य

इसरो के पास अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा या विश्व की अन्य एजेंसियों की तरह ढेर सारे संसाधन और बहुत बड़ा बजट नहीं है, लेकिन सीमित बजट में ही देश के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल कर रहे हैं. इस वजह से इसरो पूरी दुनिया के लिए उदाहरण बन गया है.

जानें ISRO की उपलब्धियों के बारे में

  • भारत का पहला अंतरिक्ष यान (मानव रहित) चंद्रयान-1, 22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च हुआ.
  • पीएसएलवी श्रृंखला के सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी-सी37 ने 15 फरवरी 2017 को 104 उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करके नया विश्व कीर्तिमान बनाया.
  • मंगलयान 5 नवंबर 2013 को अपने पहले प्रयास में ही सफलतापूर्वक लॉन्च होने के साथ ही भारत, सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया. इस मिशन की लागत 450 करोड़ रुपये थी और ये बजट नासा के पहले मंगल मिशन का दसवां और चीन-जापान के नाकाम मंगल अभियानों का एक चौथाई भर है.

इसरो का भविष्य का लक्ष्य

चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण के बाद अब ISRO का अगला लक्ष्य सबसे महत्वपूर्ण मिशन ‘गगनयान’ है जो अंतरिक्ष में मानव को भेजने से जुड़ा हुआ है. इसरो के वैज्ञानिकों की टीम इस पर कड़ी मेहनत कर रही है. यह मिशन 2022 में लॉन्च होने वाला है जिसका लक्ष्य तीन अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें सुरक्षित वापस लाना है.

एक नजर नासा पर

नासा के नाम को हिंदी में समझें तो अंतरिक्ष प्रबंधन या स्पेस मैनेजमेंट के लिए भी यह जिम्मेदार है. नासा विश्व की अन्य स्पेस एजेंसियों को भी उनके अंतरिक्ष से जुड़े प्रोग्राम्स के लिए एक आधार देता है. नासा रिसर्च के अलावा अंतरिक्ष में इंसानों को भेजने के प्रोग्राम्स पर तो काम कर ही रहा है, इसकी जिम्मेदारी एक नियंत्रक की भी है. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को भी नासा सम​र्थन दे रहा है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *