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धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में चावल की अनेक किस्में पाई जाती हैं. छत्तीसगढ़ में धान की पैदावार अधिक है. इस धान को अलग पहचान दिलाने में मंदिरहसौद की हर्षा वर्मा जुटी हई है. अपनी कला से हर्षा पैरा या जिसे पराली भी कहते हैं, उससे बेहद खूबसूरत पेटिंग तैयार करती हैं. हर्षा का नाम इस कला के लिए गोल्डन बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज है.
रायपुर/छ. ग. 28जून (KRB24NEWS) : छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. प्रदेश में धान की कई किस्में पाए जाती है. यहां की फसलों को देशभर में पहचान मिली हुई है. धान से चावल निकालने के बाद जो बचता है उसे छत्तीसगढ़ में पैरा या पराली कहा जाता है. इस पराली को अपनी कला के जरिए मंदिरहसौद की हर्षा वर्मा अलग पहचान देने का प्रयास कर रही है. हर्षा ने इस पैरा का उपयोग कर सुंदर-सुंदर कलाकृतियों का निर्माण किया है. अपनी पढ़ाई के साथ ही हर्षा अपनी पेटिंग को भी पूरा समय देती है. उन्होंने अब तक कई महापुरुषों और छत्तीसगढ़ महतारी की पेटिंग तैयार की है.
गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज
हर्षा ने पिछले साल लॉकडाउन के दौरान अपने समय का सदुपयोग करते हुए अपनी इस कला से छत्तीसगढ़ महतारी की पेंटिंग बनाई थी. इस कला को वैश्विक स्तर पर सम्मान मिला. हर्षा ने बताया 10 अप्रैल 2020 को उन्होंने छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर बनाई थी. यह चित्रकारी गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज की गई है. हर्षा बताती है कि पेंटिंग तैयार करने में धैर्य और एकाग्रता की जरूरत होती है. घंटों बैठने के बाद एक पेंटिंग तैयार होती है. कई पेंटिंग ऐसी भी है जिसे बनाने में कई दिन लग गए.
गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड
ऐसे तैयार होती है पैरा आर्ट
धान से चावल निकालने के बाद जो पैरा (पराली) बचता है उसे पेंटिंग की तरह पेपर में उकेरा जाता है. इसे ही पैरा आर्ट (paira art) कहते हैं.
- सबसे पहले पैरे की कटिंग की जाती है.
- उसे बेल्ड की सहायता से सपाट किया जाता है.
- बटर पेपर पर स्केच तैयार किया जाता है.
- तैयार स्केच पर पैरे को चिपकाया जाता है.
- बटर पेपर को उस शेप में काटा जाता है.
- कार्ड बोर्ड में काले रंग के कपड़े का बैकग्राउंड तैयार किया जाता है.
- काले कपड़े पर तैयार पैरा के शेप को चिपकाया जाता है.पैरा आर्ट
कैंप में सीखी थी ये कला
2013 में हर्षा के गांव में एक कैंप लगाया गया. हर्षा ने कैंप में जाकर इस कला को सीखा और उसकी बारीकियों को समझा. तब से लगातार हर्षा कलाकृतियां तैयार कर रही हैं. इस साल मई में उन्होंने 8 फीट लंबी और 4 फीट चौड़ी भारत माता की पेंटिंग बनाई है. इस पेंटिंग की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने सराहना भी की है.
छत्तीसगढ़ महतारी
पिछले 8 साल से हर्षा इस कला को आगे बढ़ा रही है. अब तक उसे न तो कोई सहायता मिली है और न सरकार से कोई प्रोत्साहन मिला है. हर्षा ने अपनी पेंटिंग राज्यपाल और अन्य मंत्रियों के सामने पेश की है. राज्यपाल ने कला की तारीफ करते हुए उसे केंद्र सरकार के सामने प्रस्तुत करने की बात कही थी.
पैरा कला को स्थान दिए जाने की मांग
हर्षा कहती है कि छत्तीसगढ़ की पहचान धान के कटोरे से होती है. धान से पैरा बनता है. पैरे से कोई पेंटिंग बनाई जाती है तो यह छत्तीसगढ़ के लिए पहचान की बात है. हर्षा ने सरकार से अपील की है कि जैसे ढोकरा आर्ट और माटी कला को सरकार ने पहचान दिलाई है, वैसे ही पैरा आर्ट को भी स्थान दिया जाना चाहिए.