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कोरबा (KRB24 News) :

के 80 से 100 फिट तक ऊंचे वृक्षों, अहिरन नदी का कल-कल बहता पानी, हरियाली से भरपूर चारागाह, 300 से अधिक छोटे-बड़े पशुओं की अठखेलियों के बीच महिला समूहों द्वारा कई रोजगार मूलक गतिविधियों का संचालन… कोरबा के पोड़ी-उपरोड़ा विकासखण्ड की भांवर ग्राम पंचायत के आश्रित गांव महोरा के गौठान की यही पहचान है। नदी के बहते पानी की सुरमई ध्वनि और गाय-बैलों के गले में बजती घंटियों की मधुर आवाज के बीच छत्तीसगढ़ की पुरानी ग्राम्य संस्कृति के साथ खेती-किसानी, गोबर खरीदी, जैविक सब्जी उत्पादन के साथ-साथ गोबर के दीये और गमले से लेकर सर्टिफाइड जैविक खाद और दवाईयां भी इस गौठान में बन रहीं हैं। कोरबा जिले का यह गौठान वास्तव में अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए एक आदर्श मल्टी-एक्टिविटी सेंटर के रूप में स्थापित हो चुका है। गौठान संचालन समिति के अलावा इस गौठान में सात दूसरे महिला स्व-सहायता समूह भी आजीविका से जुड़ी गतिविधियों में संलग्न है।


महोरा का गौठान पिछले साल सितंबर महीने में बनकर तैयार हुआ है। अहिरन नदी के किनारे से लगभग 100 मीटर दूरी पर सात एकड़ रकबे में फैले इस गौठान में नदी किनारे कुंआ खोदकर सौर उर्जा से चलने वाली पांच हाॅर्सपावर शक्ति की मोटर लगाकर पानी की लगातार आपूर्ति की जा रही है। गौठान में पशुओं को पीने के लिए पानी और खाने के लिए चारे की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। पशुओं को धूप और बरसात से बचाने के लिए सुसज्जित शेड भी बनाए गए हैं। बीमार पशुआंे का ईलाज और अन्य पशुओं की नस्ल सुधार के लिए ब्रीडिंग सेंटर भी वेटनरी डाॅक्टरों की देखरेख में यहां चलाया जा रहा है। यह गौठान गांव के लगभग 300 पशुओं के लिए रोजाना आदर्श शरणास्थली बन गया है। यहां मुर्गी पालन शुरू करने के लिए भी लगभग 100 वर्ग फीट का शेड तैयार हो गया है। गौठान में ही चरवाहे के लिए कक्ष भी बना है। कृषि विभाग द्वारा इस गौठान की संचालन समिति को चारागाह तैयार करने और खेती-किसानी से जुड़ी अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए 25 लाख रूपए लागत के टूल-किट भी दिये गये हैं। गौठान में दो ट्रैक्टर, कृषि यंत्र और मशीनें भी हैं। इनका उपयोग करके गौठान समिति के सदस्य और सात अन्य स्व-सहायता समूह सब्जी उत्पादन, हल्दी उत्पादन के साथ जैविक खाद उत्पादन और हरा चारा उगाने के काम में संलग्न हैं।


गौठान से लगे पांच एकड़ क्षेत्र में सुविकसित चारागाह बनाया गया है जिसमें दो एकड़ क्षेत्र में नेपियर घास के साथ-साथ मक्के की फसल भी चारे के लिए लगाई गई है। महिला स्व-सहायता समूह की सदस्यों द्वारा इसी चारागाह की बांकी बची जमीन पर बैगन, मूली, पालक, लाल भाजी, आलू-प्याज, बरबट्टी, करेला जैसी सब्जियां उगाई जा रहीं हैं। खास बात यह है कि इस सब्जी उत्पादन में रासायनिक खादों का नहीं बल्कि पूरी तरह जैविक खादों का उपयोग किया जा रहा है। स्व-सहायता समूहों ने पिछले दो-तीन सीजन में 20 से 30 हजार रूपए की सब्जी स्थानीय मार्केट में बेच दी हैं। चारागाह के छायादार भाग में हल्दी की खेती भी जैविक तरीके से की जा रही है।


ग्रामीण श्रीमती कौशल्या बाई और श्री हीरा साय ने गौठान बन जाने पर हर्ष जताते हुए बताया कि एक जगह पर गाँव के सभी पशुओं के लिए चारे पानी की व्यवस्था हो जाने से चरवाहों को अब पशुओं को लेकर दूर दूर तक नही घूमना पड़ता। जानवरों की सुरक्षा भी बेहतर हुई है। इलाज के लिए भी अब पशुओं को ले-ले कर पशु चिकित्सकों के चक्कर नही लगाने पड़ते। उन्होंने बताया कि रबी मौसम में खेतों में लगी फसलो के जानवरों द्वारा चर लेने की समस्या भी दूर हो गई है।


गौठान से जुड़े हरे कृष्णा स्व-सहायता समूह द्वारा बनाई गई जैविक खाद जिले की पहली सीजी सर्ट-सर्टिफाईड जैविक खाद है। गौठान के लगभग 11 वर्मी टांको में यह खाद बनाई जा रही है और इसे आठ रूपए प्रति किलो की दर से विभिन्न शासकीय विभागों को मांग अनुसार बेचा जा रहा है। स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने अभी तक लगभग 150 क्विंटल खाद की बिक्री कर लगभग एक लाख 20 हजार रूपए का व्यवसाय कर लिया है। हरे कृष्णा स्व-सहायता समूह ने नीम करंज आदि के तेल, अवशेष और अर्क से निमास्त्र, ब्रम्हास्त्र, अग्नेयास्त्र, फिनाइल, गौमूत्र से निर्मित जैविक कीटनाशक जैसे जैविक उत्पाद भी बनाए हैं और उन्हें खेती किसानी से लेकर घरों तक में उपयोग किया जा रहा है।

समूह द्वारा बनाये गये खाद को हसदेव अमृत नाम के ब्राण्ड से बाजार में बेचा जा रहा है। प्रचूर मात्रा में जैविक उत्पादों से समूह की महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधर गई है। हरे कृष्णा स्व सहायता समूह की कांति देवी कॅवर कहती है कि यह तो सोने पर सुहागा है कि हम जो उत्पादन करते है उसे बनाने का खर्च तो है ही नही और जैविक खाद को बेचकर कमाई भी हो रही है। खपत के लिये गाॅव मे ही जरूरत होती है, साथ ही शासकीय विभागो द्वारा माॅग जारी की जाती है। इस तरह बनी हुई खाद से कचरा प्रबंधन भी होता है और कम समय मे अच्छी कमाई भी हो जाती है।


इसके अलावा गौठान में गोधन न्याय योजना से खरीदे गये गोबर से वर्मी खाद के साथ-साथ दीये, गमले, मच्छर भगाने की अगरबत्तियां और अन्य सजावटी सामान भी स्व-सहायता समूहों द्वारा बनाया जा रहा है। दीवाली के दौरान समूह ने गोबर के दीये बेचकर 10 से 15 हजार रूपए तक लाभ कमाया है। तो वहीं गोबर के गमलों की बिक्री से समूहों को 20 हजार रूपए का फायदा हुआ है। गौठान से जुड़े स्व-सहायता समूहों द्वारा पिछले दो-तीन महीनों से केंचुआ उत्पादन भी किया जा रहा है। महोरा के केंचुआ की पूरे जिले के गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए बड़ी मांग है। केंचुआ उत्पादक समूह 400 रूपए प्रतिकिलो की दर से केंचुए की बिक्री करता है और अभी तक 30 हजार रूपए का फायदा केंचुआ बेचकर प्राप्त कर लिया हैै।

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