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कटघोरा 5 अगस्त ( KRB24NEWS ) : कटघोरा हनुमान गढ़ी की पावन धरा में राममंदिर शिलान्यास दिवस पर 9 नवम्बर 1989 शिलान्यास के प्रत्यक्ष दर्शियों एवं 1992 के कारसेवको का प्रतीकात्मक सम्मान जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा कटघोरा के सदस्यों ने घर -घर जाकर किया। इस कड़ी में पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल, रामप्रताप जायसवाल एवं शिव जायसवाल जी का सम्मान तिलक रोली शाल, श्रीफल एवम पुष्पगुच्छ से किया गया।
मंदिर निर्माण से गदगद अग्रवाल जी ने उस पल के कटु अनुभव को साझा करते हुए कहा कि हमारी तपस्या अब सफल होते दिख रही है। रामप्रताप एवं शिव जायसवाल ने भावुक होकर अपने अनुभव को बताया कि किस तरह उन्हें बंदी बनाया गया था,कितनी कठिनाई को झेला था आज उसी का सुखद पहलू है कि हम अपने प्रसन्नता के अश्रु को रोक नही पा रहे है। इस अवसर पर भारतीय कलचुरि जायसवाल महासभा के राष्ट्रीय सचिव विनोद जायसवाल, राष्ट्रीय युवा सचिव एवं छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिलाध्यक्ष राहुल डिक्सेना, महासभा के आजीवन सदस्य डॉ राजेन्द्र जायसवाल (गोपाल मेडिकल), ओमप्रकाश डिक्सेना, संजय जायसवाल (महामाया मेडिकल) ,जयशंकर जायसवाल उपस्थित रहे।
कारसेवकों की दर्द भरी कहानी
उत्तर प्रदेश में तब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. हिंदू साधु-संतों ने अयोध्या कूच कर रहे थे. उन दिनों श्रद्धालुओं की भारी भीड़ अयोध्या पहुंचने लगी थी. प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा रखा था, इसके चलते श्रद्धालुओं के प्रवेश नहीं दिया जा रहा था. पुलिस ने बाबरी मस्जिद के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग कर रखी थी.
कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई थी. पहली बार 30 अक्टबूर, 1990 को कारसेवकों पर चली गोलियों में 5 लोगों की मौत हुई थीं. इस घटना के बाद अयोध्या से लेकर देश का माहौल पूरी तरह से गर्म हो गया था. इस गोलीकांड के दो दिनों बाद ही 2 नवंबर को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए, जो बाबरी मस्जिक के बिल्कुल करीब था.
उमा भारती, अशोक सिंघल, स्वामी वामदेवी जैसे बड़े हिन्दूवादी नेता हनुमान गढ़ी में कारसेवकों का नेतृत्व कर रहे थे. ये तीनों नेता अलग-अलग दिशाओं से करीब 5-5 हजार कारसेवकों के साथ हनुमान गढ़ी की ओर बढ़ रहे थे.
प्रशासन उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा था, लेकिन 30 अक्टूबर को मारे गए कारसेवकों के चलते लोग गुस्से से भरे थे. आसपास के घरों की छतों तक पर बंदूकधारी पुलिसकर्मी तैनात थे और किसी को भी बाबरी मस्जिद तक जाने की इजाजत नहीं थी.
2 नवंबर को सुबह का वक्त था अयोध्या के हनुमान गढ़ी के सामने लाल कोठी के सकरी गली में कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे. पुलिस ने सामने से आ रहे कारसेवकों पर फायरिंग कर दी, जिसमें करीब ढेड़ दर्जन लोगों की मौत हो गई. ये सरकारी आंकड़ा है. इस दौरान ही कोलकाता से आए कोठारी बंधुओं की भी मौत हुई थी.
कारसेवकों ने अयोध्या में मारे गए कारसेवकों के शवों के साथ प्रदर्शन भी किया. आखिरकार 4 नवंबर को कारसेवकों का अंतिम संस्कार किया गया और उनके अंतिम संस्कार के बाद उनकी राख को देश के अलग-अलग हिस्सों में ले जाया गया था.
अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह यादव ने कई साल बाद आजतक से बात करते हुए कहा था कि उस समय मेरे सामने मंदिर-मस्जिद और देश की एकता का सवाल था. बीजेपी वालों ने अयोध्या में 11 लाख की भीड़ कारसेवा के नाम पर लाकर खड़ी कर दी थी. देश की एकता के लिए मुझे गोली चलवानी पड़ी. हालांकि, मुझे इसका अफसोस है, लेकिन और कोई विकल्प नहीं था.
मुलायम सिंह हुए ‘मुल्ला मुलायम’
इस घटना के दो साल बाद 6 दिसंबर, 1992 में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था. 1990 के गोलीकांड के बाद हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह बुरी तरह चुनाव हार गए और कल्याण सिंह सूबे के नए मुख्यमंत्री बने. तब मुलायम को ‘मुल्ला मुलायम’ तक कहा जाने लगा क्योंकि उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलाने के आदेश दिए थे. मुलायम सिंह ने इसी दौरान समाजवादी पार्टी का गठन भी किया और उन्हें मुस्मिलों का नेता कहा जाने लगा.
साल 1990 की घटना के 23 साल बाद जुलाई 2013 में मुलायम ने कहा था कि उन्हें गोली चलवाने का अफसोस है लेकिन उनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं था. बेकाबू हुए कारसेवकों पर यूपी पुलिस ने फायरिंग की थी, जिसमें कई कारसेवक मारे गए थे.
मुलायम ने कहा था कि उस समय मेरे सामने मंदिर-मस्जिद और देश की एकता का सवाल था. बीजेपी वालों ने अयोध्या में 11 लाख की भीड़ कारसेवा के नाम पर लाकर खड़ी कर दी थी. देश की एकता के लिए मुझे गोली चलवानी पड़ी. हालांकि मुझे इसका अफसोस है. लेकिन और कोई विकल्प नहीं था.