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बिलासपुर 22 मार्च 2023(KRB24NEWS):

प्रत्येक वर्ष की भांति परंपरा अनुसार सिंधी समाज द्वारा बड़े ही जोर शोर और भव्यता के साथ भगवान श्री झूलेलाल यानी वरुण देवता की जन्मतिथि के अवसर पर चेट्रीचंड्र महोत्सव का विशाल आयोजन किया जाता है। समाज के इस महोत्सव में सभी लोग क्या महिलाएं और क्या बच्चे असीम उत्साह और उमंग से भरपूर होकर इस महोत्सव में शामिल होते हैं। इस अवसर पर सभी लोग श्रद्धा और उमंग के साथ काफी खुशियां और एक दूसरे से गले मिलकर भाईचारे का संदेश बांटते हैं। इस वर्ष भी सिंधी समाज के आराध्य देव श्री झूलेलाल भगवान जी के 1072 वें अवतरण दिवस पर भव्य जयंती महोत्सव को मनाए जाने कि तैयारियां श्री सिंधु अमरनाथ धाम आश्रम एवं बाबा गुरमुखदास सेवा समिति झूलेलाल चकरभाटा द्वारा की जा रही है । यह समारोह एक अप्रैल से प्रारंभ होकर 3 अप्रैल तक तीन दिवसीय महोत्सव के रूप में चलेगा। एक अप्रैल के दिवस पर सिंधी डांडिया( छेड़ )का आयोजन स्पेशल बैंड के साथ किया जा रहा है! वहीं दो अप्रैल को पूज्य बडराने साहब की आरती और भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी। उक्त शोभायात्रा श्री झूलेलाल मंदिर एवं जय झूलेलाल युवा समिति के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। महोत्सव के अंतिम दिवस यानी तीन अप्रैल को विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं ।कार्यक्रम में सिंधी महिला मंडल और झूलेलाल सखी सहेली द्वारा एवं साईं लाल दास जी के श्री मुख से सत्संग कीर्तन का आयोजत रखा गया है । समाज ने इस अवसर पर सभी लोगों को सभी धर्मावलंबियों को सहृदय आमंत्रित करते हुए इस महोत्सव में शामिल होने की अपील की है। अब आइए जान ले श्री झूलेलाल भगवान की उत्पत्ति एवं उनके जीवन वृतांत को__ आज से एक हजार तिहत्तर वर्ष पूर्व सिंधु नदी के तटीय इलाके में एक ऐसे दिव्य पुरुष ने जन्म लिया था ,जिसकी वीरता और बहादुरी के कारण हिंदुओं के धर्म की रक्षा संभव हो सकी थी। सैनिक और शांत दोनों ही धाराओं का मिलन इस युगपुरुष के स्वभाव में कूट-कूट कर शामिल था। तभी तो इनके उपदेशों और शिक्षाओं की जीवन धारा प्रवाहित होने से जन-जन इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उनकी गणना अवतारी पुरुष के रूप में की जाती है। इस महापुरुष ने हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा करते हुए जो संजीवनी प्रदान की वह सैकड़ों वर्षो के बाद भी आज हिंदू कौम और धर्म, विश्व के रंगमंच पर अपनी महान विशेषताओं के साथ आलोकित हो रहा है ऐसा माना जाता है कि श्री झूलेलाल जल के देवता वरुण देव के अवतार हैं। दसवीं वीं शताब्दी में सिंधु नदी के तट पर स्थित नसीरपुर गांव में झूलेलालजी का जन्म ठाकुर रतन राम के घर हुआ था। इस समय हिंदू जनता वहां के मुस्लिम शासक मिरखसाह के नृशंस अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर रही थी। वह बादशाह शाही मद में चूर होकर चंद धर्म के ठेकेदार मौलवियों और मूल्लाओं के भड़काने पर धार्मिक सद्भावना को भूल चुका था। और हिंदुओं को जबरदस्ती मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए अत्याचार पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। मिरखशाह के दमन और जुल्मों की अति हो जाने पर हिंदू कौम के लोग अत्यधिक परेशान हो उठे। अब तो उनका ही नहीं वरन धर्म पर भी अस्तित्व का खतरा आन पड़ा था। तब वे सभी एकत्रित होकर सिंधु नदी के तट पर जाकर वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधि पूर्वक पूजा उपासना प्रारंभ की। सबकी कठिन आराधना से अंततः वरुण देवता प्रसन्न हो गए और तब यह आकाशवाणी हुई कि ” हे भक्तों तुम सब अब निश्चिंत हो जाओ। दुष्ट अत्याचारी मीरख शाह के पाप का घड़ा भर चुका है। अतः मैं आज से ठीक सातवें दिन नसीरपुर ग्राम में ठाकुर रतन राम की धर्म पत्नी के गर्भ में जन्म लूंगा और तुम्हारे सभी कष्टों को दूर करूंगा।” तदनुसार आकाशवाणी के अनुसार सन् 951 ईसवी में ठीक सातवें दिन अर्थात चैत्र मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया को ठाकुर रतन राम के यहां एक सुंदर बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उदय चंद रखा गया। उधर मिरखशाह की ज्यादतियां दिन पर दिन बढ़ती चली जा रही थी। और इधर उदय चंद भी बड़ा होता जा रहा था। तब एक दिन मिरखशाह ने हिंदुओं को दो दिन का समय दिया – कि वह प्राण बचाने के लिए मुस्लिम धर्म अपना लें, वरना उसके बाद सभी को जान से मार दिया जाएगा। उस चुनौती का सामना करते हुए उदय चंद अर्थात उडेरोलाल ने अपनी संगठित हिंदू सेना के साथ पूरी बहादुरी से अत्याचारी बादशाह का सामना किया। उडेरोलाल यानी झूलेलाल ने सेना का संचालन कुशलतापूर्वक करते हुए मिरखशाह को उसके ही किले में घुसकर युद्ध में विजय प्राप्त की। युद्ध में विजय का सबसे बड़ा कारण उनकी सेना (जल सेना) का बहुत बड़ा हाथ रहा था। इतिहास में इस बात का उल्लेख है कि वीर उडेरों लाल ने अपनी नौसेना का मिरखशाह पर इतना ज्यादा भय बिठा दिया था कि उसकी रातों की नींद हराम हो गई थी। उसे हमेशा सपनों में उडेरोलाल ही दिखाई देते थे ,जो उसे जान से मार रहे हैं। वीर उडेरोलाल ने अपने संत स्वभाव का परिचय देते हुए अत्याचारी मिरखशाह को हराकर उसे अपदस्थ तो कर दिया ,पर उसे जीवनदान भी दे दिया था। उनकी इस उदारता के कारण उन्हें सारे सिंध में भगवान की तरह पूजा जाने लगा। हिंदू तो हिंदू मुसलमान भी उन्हें पूजनीय रूप में मानने लगे। वीर उदयचंद्र को ही आयोलाल झूलेलाल ,वरुण देवता ,जल देवता, लाल साईं, उडेरोलाल आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। अपने अवतार की अभीष्ट प्राप्ति के पूरा होने के बाद उन्होंने सन् 964 ईसवी में जल समाधि ले ली थी। मिरखशाह पर विजय, धर्म की अधर्म पर विजय तथा भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान को स्मरण करते हुए ही झूलेलाल के जन्मदिवस को चेट्रीचंड्र के रूप में मनाए जाने की परंपरा चल निकली है।

– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”