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कवर्धाः बाघों की कमी के कारण भोरमदेव अभ्यारण्य रौनक कम होती जा रही है. करीब 10 साल पहले तक यहां 6 से अधिक बाघ देखे जा सकते थे, लेकिन अब यहां एक या दो ही बाघ नजर आते हैं. एक्सपर्ट के मुताबिक, भोरमदेव टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या कम होने का एक मुख्य कारण यहां सोन कुत्तों की तादाद भारी मात्रा में होना माना जा रहा है.सोन कत्ते झुंड में रहते है और अभ्यारण्य में इनके तीन से अधिक झुंड हैं. यह बाघ या दूसरे बड़े जानवरों द्वारा किए गए शिकार को छिनकर खा जाता हैं.
वन विभाग की टीम टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए काम करने का दावा कर रही है. साथ ही वह सोन कुत्तों की बढ़ती संख्या के कारण बाघों की घटती संख्या पर असर पडने से भी इंकार नहीं कर रहे. पार्क में खाने की कमी के कारण बाघ भोजन की तलाश मे कान्हा नेशनल पार्क की ओर रुख कर रहे हैं. कान्हा नेशनल पार्क व अचानकमार टाइगर रिजर्व के बीच में होने के बाद भी भोरमदेव अभ्यारण्य में बाघों की संख्या बढ़ नहीं पा रही हैं.
जिला के भोरमदेव अभ्यारण्य वन्य जीवों के लिए एक बड़ा अनुकूल स्थान हैं, जहां बाघ, तेंदुआ, हिरण, कोठरी, भालू, लोमडी जैसे अनेक प्रकार के वन्य प्राणियों हैं. कवर्धा जिले के वन मंडल अधिकारी दिलराज प्रभाकर के मुताबिक, जिले के एक ओर नेशनल पार्क है तो दूसरी ओर अचानकमार टाइगर रिजर्व है. कभी-कभी बाघ घूमते-घूमते या प्रजनन के लिए भोरमदेव अभ्यारण्य में आते हैं. बाघों की आपस में लडाई होने पर भी वह इलाका बदलते हैं. उन्होंने कहा कि अभ्यारण्य मे तेंदुए और सोन कुत्तों की संख्या ज्यादा है और वे झुंड मे रहतें है, इसलिए सोन कुत्ते बड़े जानवरों के शिखर झीन लेते है. तेंदुआ भी शिकार छिन कर पेड़ पर चड़ जाते है और ऐसे में अपने शिकार को बचा पाने मे बाघ नाकाम हो जाते हैं. यही कारण है कि बाघों की संख्या कम होती जा रही है.