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झीरम नक्सल हमले को आज 8 साल पूरे हो गए. लेकिन आज भी इस कांड की सच्चाई सामने नहीं आ सकी. NIA की जांच अब भी जारी है. कई चश्मदीदों ने खुलकर कहा कि झीरम कांड पूरी तरह से राजनीतिक साजिश थी. इसके बावजूद अब तक सिर्फ जांच ही चल रही हैं. जबकि प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार है.

रायपुर 25मई (KRB24NEWS) : झीरम नक्सल हमले को आज 8 साल पूरे हो गए हैं. लेकिन अब कई अनसुलझे सवाल हैं. जिनका जवाब आना अब भी बाकी है. 25 मई 2013 को कांग्रेस नेताओं के काफिले पर बस्तर की दरभा घाटी में नक्सलियों ने हमला बोला था. इस हमले में विद्याचरण शुक्ल, नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा जैसे बड़े नेताओं समेत करीब 30 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. इस हमले में जिस तरह नक्सलियों ने बर्बरता दिखाई थी उसे याद कर अंदाजा लगया जा सकता है कि नक्सलियों का चेहरा कितना खौफनाक है.

कई घंटों तक होती रही फायरिंग लेकिन मदद नहीं मिली

कांग्रेस नेता परिवर्तन यात्रा के तहत सुकमा में एक सभा में शामिल होकर वापस लौट रहे थे. तभी दरभा घाटी में घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. चश्मदीदों के मुताबिक गोलियों की बरसात सा कर दिया गया. इसके बाद काफिले में शामिल गाड़ियों में से महेन्द्र कर्मा की तलाश शुरू हुई. वे नक्सलियों की हिट लिस्ट में काफी पहले से थे. नक्सली तो उन्हें पहचानते भी नहीं थे लेकिन ये सोचकर नक्सलियों को अपनी पहचान बताई कि शायद उन्हें पाने के बाद नक्सली बाकी साथियों को छोड़ देंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. नक्सलियों ने कर्मा की बेरहमी से हत्या कर दी.

तत्कालीन PCC चीफ नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल को भी कुछ दूर ले जाकर निर्दयता से मार दिया. पूर्व विधायक उदय मुदलियार समेत कई नेताओं की घटना स्थल पर ही मौत हो गई. पार्टी के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल को भी कई गोलियां लगी वे मौत से संघर्ष करते रहे उन्हें इलाज के लिए पहले रायपुर लाया गया फिर दिल्ली ले जाया गया लेकिन उन्हें भी नहीं बचाया जा सका.

झीरम एक नरसंहार

इस तरह झीरम कांड ने जिसे एक तरह नरसंहार भी कहा गया. छत्तीसगढ़ से कांग्रेस कई बड़े नेताओं को एक झटके में छीन लिया. इस कांड के बाद NIA की जांच जारी है. इस मामले में कई सियासी आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे हैं. झीरम में हुए इस नक्सली हमले से बचकर निकले कई लोगों या मारे गए लोगों के परिजनों को भूपेश सरकार में अहम स्थान दिया गया है. भूपेश बघेल ने झीरम के जख्म को सहानुभूति भरे फैसले लेकर भरने की कोशिश जरूर की है, लेकिन इस कांड से पर्दा अभी उठना अभी बाकी है.

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