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9 मई ( KRB24NEWS ) :-
रोज चार लाख से ज्यादा नए मामले….चार हजार से ज्यादा मौतें….आजाद भारत की सबसे बड़ी त्रासदी है कोरोना. जैसा हाल कोरोना काल में हुआ, वैसा कभी नहीं देखा. एक-एक सांस के लिए मोहताज,अस्पताल में बिस्तर के लिए हाथ जोड़कर गुहार. एक महामारी ने कैसे पूरे स्वास्थ्य तंत्र को अंदर तक झकझोर कर रख दिया. पहली लहर के दौरान तो फिर भी स्थिति संभल गई, लेकिन इस दूसरी सुनामी ने सब पर पानी फेर दिया. देश के स्वास्थ्य महकमे पर सवाल उठे, सरकार पर सवाल उठे, लापरवाह भीड़ के लिए किसे जिम्मेदार माना जाए यह भी सवालों के घेरे में है.

लेकिन फिर भी हमारे देश, हमारी सरकार ने कई ऐसी गलतियां की हैं जो अगर ना होतीं तो दूसरी लहर से ऐसी तबाही कभी नहीं मचती. एक नजर ‘ ये ना होता तो’ वाली घटनाओं पर

ये ना होता तो…..कोरोना काल में चुनाव

यह भारत की खूबसूरती कही जा सकती है जहां पर कोरोना का डर तो था, फिर भी समय पर चुनाव कराने को वरीयता दी गई. चुनाव के सामने कोरोना के बढ़ते मामलों को अलग कर दिया गया. पिछले साल बिहार चुनाव को भी कोरोना की पहली लहर के दौरान ही अंजाम दिया गया था. लेकिन तब स्थिति कंट्रोल में रही, तो सभी को लगा कि भारत ने कुछ कमाल कर दिया है. इसे देखते हुए कोरोना को दोबारा खुला निमंत्रण दे दिया गया. वो भी पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी के जरिए, तो ऐसा विस्फोट हुआ कि सभी दलों की हार-जीत पीछे छूट गई और दिखाई पड़ा तो सिर्फ तबाही का मंजर.

पश्चिम बंगाल की बात कर लेते हैं, सबसे ज्यादा चर्चा तो इसी चुनाव की रही थी. सभी दलों ने दनादन रैलियां की थीं, रोड शो हुए थे. चुनाव आयोग ने कुछ नियम तो बनाए, लेकिन उन्हें पालन कराने वाले पूरे चुनाव में नदारद ही रहे. ऐसे में बंगाल में छठे चरण तक लगातार महा रैलियां हुईं. क्या बीजेपी क्या टीएमसी, सभी ने सोशल डिस्टेंसिंग का माखौल उड़ाया. नेता तो बिना मास्क के दिखे ही, वहां पहुंची लाखों की संख्या में भीड़ भी तमाम कोरोना प्रोटोकॉल को चुनौती देती दिखाई दी. अब बंगाल में चुनाव खत्म हो गए हैं, लेकिन कोरोना फुल स्पीड से दौड़ रहा है.

तमिलनाडु में भी एक से एक बड़ी रैली को अंजाम दिया गया. मुख्यमंत्री बन चुके एमके स्टालिन ने भी कोरोना काल में बड़े रोड शो करने से एक बार भी गुरेज नहीं किया. उनकी पार्टी की तरफ से लगातार सोशल मीडिया पर तस्वीरें शेयर की जाती थीं, लोगों का जनसमूह दिखाया जाता था. बस किसी को नहीं दिखता था तो वो अदृश्य कोरोना जो धीरे-धीरे पैर पसारना शुरू कर चुका था.

ये ना होता तो…..कोरोना काल में होली का जश्न

होली पर तो कोरोना ने पिछले साल भी ग्रहण लगाया था, लेकिन तब लोगों के अंदर एक खौफ था. उस खौफ की वजह से कहीं भी होली का बड़ा जश्न देखने को नहीं मिला. अब 2021 की होली में कोरोना के मामले तो बढ़ने शुरू हुए, लेकिन लोगों का डर गायब था. असम की होली ले लीजिए, या फिर बात हो मथुरा की, सब जगह सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ीं और रंगों के त्योहार में कोरोना का रंग मिल गया.

आंकड़े साफ बताते हैं कि होली के बाद से देश में कोरोना की स्थिति बद से बदतर होनी शुरू हुई. 29 मार्च को देश में कोरोना के संक्रमित मरीज 5 लाख 40 हजार 720 थे. सिर्फ 15 दिन बाद यानी की 13 अप्रैल को ये आंकड़ा 13 लाख 65 हजार 704 पर जा पहुंचा. गणित की भाषा में समझें तो होली के बाद कोरोना के मामलों में 152% का उछाल आ गया. ये बताने के लिए काफी है कि रंगों के त्योहार ने कैसे रंग में भंग डाला है.

ये ना होता तो…..कोरोना काल में कुंभ का आयोजन

सरकार ने कोरोना की पहली लहर के दौरान कुंभ आयोजन पर रोक लगा दी थी, लेकिन इस साल जब मामले रिकॉर्डतोड़ थे, तब ऐसा कुछ नहीं हुआ. सीएम तीरथ सिंह रावत ने तो यहां तक कह दिया कि मां गंगा की कृपा से कुंभ में कोरोना नहीं फैलेगा. लेकिन कोरोना फैला और इस स्तर पर फैला कि अप्रैल महीने में राज्य में हर सवा मिनट पर एक शख्स संक्रमित निकला. हिंदू की एक खबर के मुताबिक अप्रैल 10 से 14 के बीच कुंभ आयोजन के दौरान 2,36,751 कोरोना टेस्ट किए गए थे. उसमें से भी 1700 लोगो पॉजिटिव पाए गए. लेकिन फिर भी कुंभ जारी रहा और आस्था के साथ कोरोना की डुबकी लगती रही.

ये ना होता तो…..कोरोना काल में पंचायत चुनाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि देश को किसी भी हालत में कोरोना को गांव में फैलने से रोकना होगा. लेकिन फिर भी देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में पंचायत चुनाव हुए. इससे यूपी के कई गांव तक तो कोरोना ने दस्तक दी ही, वहीं उस चुनाव में ड्यूटी देने आए कई अधिकारियों की भी जान पर बन आई. यूपी के शिक्षक संगठन ने दावा किया था कि पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान 577 बेसिक शिक्षकों की जान कोरोना संक्रमण की वजह से चली गई. हाई कोर्ट की तरफ से चुनाव आयोग को फटकार भी पड़ी, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला और अब यूपी में कोरोना गांव तक पैर पसार चुका है.

ये ना होता तो…..कोरोना काल में शादियां

पहली लहर के दौरान कुछ महीनों का लॉकडाउन रहा था. शादियों का सीजन तो था लेकिन ज्यादा शादियां नहीं हुईं और कोरोना फैलने से रुक गया. लेकिन दूसरी लहर के शुरुआती दिनों में कई जगह पर बड़ी-बड़ी शादियां हुईं. उन शादियों के जरिए क्लस्टर में कोरोना के केस मिलने शुरू हुए. कहीं 70 तो कहीं एक साथ 100. सिर्फ राज्य बदले, कहानी वही रही और देखते ही देखते इन्होंने सुपर स्प्रेडर का रूप ले लिया.

अब ये तो बात हो गई उन सुपर स्प्रेडर इवेंट की, लेकिन भारत सरकार ने अपनी तरफ से भी कई गलतियां की हैं. सरकार को कोरोना की दूसरी लहर से कई महीने पहले चेतावनियां दी गई थीं. बेड बढ़ाने के भी संकेत दिए गए थे. लेकिन कुछ नहीं किया गया. इसलिए फिर गिनवाते हैं ‘ये ना होता तो’ वाली लिस्ट-

ये ना होता तो….सरकार ने नजरअंदाज कर दीं कई चेतावनियां

कोरोना की दूसरी लहर की आहट शायद लोगों को पहले महसूस ना हुई हो, लेकिन एक्सपर्ट के मन में डर पैदा हो गया था. सिंतबर की बात है जब Empowered Group of Officers (EG-1) ने कहा था कि देश को रोज के तीन लाख कोविड केस के लिए तैयार रहना चाहिए. ये भी कहा गया था कि 1.6 लाख ICU बेड की जरूरत पड़ेगी.

फिर एक महीने बाद अक्टूबर 5 को देश में पहली बार कोरोना का डबल म्यूटेंट वेरिएंट पाया गया. जब सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग की जा रही थी, तब इसका खुलासा हुआ. ये पहला संकेत था कि कुछ तो भयानक हो सकता है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि जिस जीनोम सीक्वेंसिंग की वजह से ये वेरिएंट सामने आया, नवंबर से जनवरी के बीच उस प्रक्रिया को काफी धीमा कर दिया गया. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक फंड्स की कमी इसकी बड़ी वजह रही.

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अक्टूबर के बाद नवंबर में भी सरकार की आंखें खोलने का प्रयास हुआ. पार्लियामेंट्री पैनल की तरफ से केंद्र सरकार को सलाह दी गई कि वो अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ाए और ऑक्सीजन प्रोडक्शन को भी ज्यादा कर दे. ये सारी सलाह दूसरी लहर से लगभग 4 महीने पहले दी गईं. अगर सरकार चाहती तो इन सुझावों पर समय रहते अमल हो जाता और फिर ना बेड की कमी पड़ती और ना ही ऑक्सीजन के लिए दर-दर भटकना पड़ता.

अब जब कोरोना की दूसरी लहर से तबाही मच रही है, तब भी कई सुपर स्प्रेडर इवेंट देखने को मिल रहे हैं. ये इवेंट वैसे तो कोरोना से बचाने के लिए जरूरी हैं, लेकिन प्रशासन की लचर व्यवस्था के कारण कोरोना का केंद्र बन सकते हैं. एक नजर ‘ये ना हो जाए’ लिस्ट पर-

ये ना हो जाए…वैक्सीन लगवाने की लंबी कतारें ना फैलाएं कोरोना

हर राज्य में टीकाकरण का काम तेजी से चल रहा है. उस टीकाकरण को लगवाने के लिए जो भीड़ सेंटर के बाहर दिख रही है, उससे लोगों का उत्साह तो दिख ही रहा है,साथ ही साथ कोरोना की आहट भी महसूस हो रही है. ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जहां पर लोग सोशल डिस्टेंसिंग को छोड़ घंटो लाइन में लग सिर्फ वैक्सीन लगवाना चाहते हैं.

ये ना हो जाए…ऑक्सीजन सिलेंडर वाली कतारें ना फैलाएं कोरोना

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की भारी किल्लत देखने को मिल रही है. अस्पतालों के पास ऑक्सीजन खत्म है तो लोग खुद ही कई सेंटर के बाहर लाइन लगा सिलेंडर भरवा रहे हैं. कई किलोमीटर लंबी लाइनें देखने को मिल रही हैं. कहीं मास्क आधा लगा दिख रहा है तो कहीं पर लगाया ही नहीं गया है. लेकिन शक तो ये है कि कहीं ये सिलेंडर लेने की होड़ कोरोना को फैलने की ‘ऑक्सीजन’ ना दे जाए.

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