Share this News

आधुनिकता के दौर में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक सूपा और पर्रा विलुप्त होते जा रहे हैं. बांस से बने सूपा और पर्रा का उपयोग अब शादी-ब्याह और तीज त्योहारों तक ही सीमित रह गई है. छत्तीसगढ़ के घर-घर में बड़ी, बिजोरी और पापड़ बनाने के लिए सूपा और पर्रा का उपयोग होता था, लेकिन प्लास्टिक के दौर में इसकी उपयोगिता कम हो गई है.

रायपुर/ छ.ग 26 जून (KRB24NEWS) : छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. प्रदेश के लोक संगीत, नृत्य, रहन-सहन, पारंपरिक कलाकृति और वस्तुओं की अगल पहचान है. छत्तीसगढ़ में बांस एक महत्वपूर्ण सामग्री है. जिसे प्रकृति से प्राप्त किया जाता है. खेत-खलिहान से लेकर घर-आंगन तक सभी काम में बांस से बनी चीजों का उपयोग होता है. बांस से कई तरह के सामान बनाए जाते हैं. खासकर शादी और तीज त्योहारों में बांस से बने सुपा, टोकनी और पर्रा-पर्रि(soopa and parra in chhattisgarh) जैसी चीजें काफी चलन में थी. लेकिन आधुनिकता और बदलते दौर में छत्तीसगढ़ के घरों से अब परंपरागत चीजें विलुप्त होती जा रही है.

पर्रा

बांस से निर्मित पर्रा जिसका उपयोग शादी-ब्याह के सीजन के साथ ही तीज त्योहारों में होता है. पर्रा का उपयोग घर की महिलाएं बड़ी, बिजोरी और पापड़ जैसे चीजें बनाने के लिए किया करती थी. लेकिन अब धीरे-धीरे बांस से बने पर्रा-पर्रि का चलन खत्म होते जा रहा है.

Traditional soopa and parra

बड़ी और बिजोरी

बड़ी, बिजोरी और पापड़ बनाने के लिए पर्रा का उपयोग

महिलाएं बताती हैं कि पुराने समय में इसका उपयोग शादी ब्याह और तीज त्योहारों में किया जाता था. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ी व्यंजन जैसे बड़ी, बिजोरी और पापड़ जैसी चीजों को बनाने के लिए भी पर्रा का उपयोग किया जाता था. बदलते दौर में लोग छत के ऊपर कपड़ा या फिर पॉलीथिन डालकर बड़ी, बिजोरी और पापड़ बनाने लगे हैं. जिसके कारण बांस से निर्मित सामान अब धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ में घरों से खत्म होते जा रहे है. लोग अब छत्तीसगढ़ के इन व्यंजनों को रेडीमेड खरीदना पसंद कर रहे हैं. कुछ पुराने लोग हैं जो घरों में बनाते हैं.

बाजारों में बांस से निर्मित सामानों की मांग घटी

राजधानी रायपुर के गोल बाजार में बांस से निर्मित सुपा, टोकनी, पर्रा और दूसरी चीज बेचने वाले दुकानदार भी बताते हैं कि पहले की तुलना में अब इन सामानों की मांग कम हो गई है. पहले इसकी खूब बिक्री हुआ करती थी. लेकिन अब सिर्फ शादी ब्याह और तीज त्योहारों के लिए लोग पर्रा का उपयोग कर रहे हैं. सामान नहीं बिकने से दुकानदारों को भी मायूसी का सामना करना पड़ रहा है.

शादी ब्याह और तीज त्योहारों पर सिमटी पर्रा की मांग

आधुनिक होते बाजार ने पारंपरिक चीजों पर भी ग्रहण लगा दिया है. कभी घरों के, खेतों के और रसोइयों का अहम हिस्सा रहे बांस के सामान अब शादी ब्याह और पूजा-पाठ तक सिमटने लगे हैं. बांस की बनी चीजों की जगह धीरे-धीरे प्लास्टिक के बने सामान लेने लगे हैं. बांस की टोकरियां, झेझरी, पर्रा अब धीरे-धीरे अब कम होते नजर आ रहे हैं.

प्लास्टिक ने ली बांस से बने सामानों की जगह

बांस बस्तर के आदिवासियों की आजीविका के प्रमुख साधनों में से एक है लेकिन प्लास्टिक ने इस पर भी नजर लगा दी है.लोगों का बांस के प्रति झुकाव कम होने का कारण ये है कि इनका बना सामान कम दिन चलता है. खलिहानों में उपयोग की जाने वाले टोकरी और सूपा की बुनाई एक साल में कमजोर पड़ने लगती है. यही स्थिति सफाई के लिए काम आने वाले झाड़ू के साथ भी है. बंधाई कमजोर होने से इनकी कड़ियां बिखरने लगती हैं इसलिए भी शायद प्लास्टिक का बना सामान इनकी जगह ले रहा है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *